समस्त मोहनीय कर्म के उपशम या क्षय से जैसा आत्मा का स्वभाव है उस अवस्था रूप जो चारित्र होता है वह यथाख्यात चारित्र कहलाता है अथवा मोहनीय कर्म के उपशान्त या क्षीण हो जाने पर जो वीतराग संयम या चारित्र …
जो कथन अनुलोम व प्रतिलोम क्रम के बिना जहाँ कहीं से भी किया जाता है, उसे यथातथानुपूर्वी कहा जाता है। जैसे- हाथी, भैंसा, जलपरिपूर्ण सघन मेघ, कोयल, मयूर का कण्ठ, भ्रमर के समान वर्ण वाले, हरिवंश के प्रदीप, व शिव …