यथाख्यात चारित्र
समस्त मोहनीय कर्म के उपशम या क्षय से जैसा आत्मा का स्वभाव है उस अवस्था रूप जो चारित्र होता है वह यथाख्यात चारित्र कहलाता है अथवा मोहनीय कर्म के उपशान्त या क्षीण हो जाने पर जो वीतराग संयम या चारित्र होता है उसे यथाख्यात चारित्र कहते हैं । यथाख्यात बिहार शुद्धिसंयत जीव उपशान्त कषाय वीतराग, छद्मस्थ, क्षीणकषाय वीतराग छद्मस्थ, सयोग केवली और अयोग केवली इन चार गुणस्थानों में होते हैं।