प्रतिवादी द्वारा उठाए गये दोष को अपने पक्ष में स्वीकार करके उसके उद्धार किए बिना ही “तुम्हारे पक्ष की ऐसा ही दोष है” इस प्रकार कहकर दूसरे पक्ष में समान दोष उठाना, मतानुज्ञा नाम का निग्रह स्थान है।
जिस कर्म के उदय से जीव का मतिज्ञान प्रगट नहीं हो पाता उसे मतिज्ञानावरण कार्य कहते हैं।