काल और संहनन की अपेक्षा साधु के योग्य द्रव्य, क्षेत्र आदि का वर्णन करने वाला महाकल्प या महाकल्प्य नाम का अंगबाह्य है।
जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि चार सम्यक्ज्ञानों (मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय) के बल से मंदिर पंक्ति प्रमुख सभी महान उपवासों को करता है, वह महातप ऋद्धि है।
जिसकी प्रभा गाढ़ अंधकार के समान है, वह महातमः प्रभा भूमि है। इसका वर्णन माधवी है।
जिसमें समस्त इन्द्र और प्रतीन्द्रों में उत्पन्न होने में कारणभूत तपश्चरण आदि का वर्णन किया गया हो वह महापुण्डरीक नाम का अंगबाह्य है। महापुण्डरीक हृद ( तालाब) का नाम भी है।