राग-द्वेष से मन परावृत्त होना, यह मनो- गुप्ति के लक्षण हैं। राग-द्वेष से अवलम्बित सकल संकल्पों को छोड़कर जो मुनि अपने मन को स्वाधीन करता है और समता भाव में स्थिर करता है तथा सिद्धांत के सूत्र की रचना में …
जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु अन्तर्मुहूर्त में समस्त श्रुत का चिन्तन करने में समर्थ होता है उसे मनोबल – ऋद्धि कहते हैं।