यह दिगम्बर मुनि की पहचान का बाह्य चिन्ह है। यह लोगों में साधु विषयक विश्वास उत्पन्न करने का चिन्ह है तथा इसे धारण करने से मुनिजन प्राचीन मुनियों के प्रतिनिधि स्वरूप हैं, ऐसा निश्चय हो जाता है। यह मयूर के …
निजात्मा का चिन्त्वन करना पिण्डस्थ ध्यान है अथवा श्वेत किरणों से प्रकाशित और आठ प्रातिहार्य से युक्त जो निज रूप अर्थात् अर्हन्त तुल्य आत्म स्वरूप का ध्यान किया जाता है, उसे पिण्डस्थ ध्यान कहते हैं। अथवा अपनी नाभि में, हाथ …
प्यास की बाधा को समता पूर्वक सहन करना पिपासा परीषह जय कहलाता है। जो साधु नीरस आहार, ग्रीष्मकालीन गर्मी, पित्तज्वर या उपवास आदि के कारण उत्पन्न हुई तथा शरीर व इन्द्रियों का मंथन करने वाली तीव्र प्यास की वेदना का …