पिपासा परीषह जय
प्यास की बाधा को समता पूर्वक सहन करना पिपासा परीषह जय कहलाता है। जो साधु नीरस आहार, ग्रीष्मकालीन गर्मी, पित्तज्वर या उपवास आदि के कारण उत्पन्न हुई तथा शरीर व इन्द्रियों का मंथन करने वाली तीव्र प्यास की वेदना का प्रतिकार नहीं करते तथा प्यास रूपी अग्नि को सन्तोषरूपी मिट्टी के घड़े में भरे हुए शीतल समाधिरूपी जल से शान्त कर देते हैं उनके पिपासा परीषह जय होता है।