1. लोक में उपकारी जनों अर्थात् माता पिता व अध्यापक को गुरु कहा जाता है । 2. धार्मिक क्षेत्र में सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र इन गुणों के द्वारा जो महान हैं उनको गुरु कहते हैं अर्थात् आचार्य, उपाध्याय और साधु- ये …
बिना शिक्षा ग्रहण किए तीनों लोक के गुरु स्वीकारे जाना गुरुपूजन क्रिया है। (तीर्थंकर के संदर्भ में)
हिंसादिपाप- क्रियाओं में और आरम्भपरिग्रह में लिप्त रहने वाले साधुओं को गुरु मानकर उनकी भक्ति, वंदना, प्रशंसा आदि करना गुरूमूढ़ता है। इसे समय-मूढ़ता भी कहते हैं ।
आचार्य आदि वीतरागी गुरूओं की पूजा करना तथा उनकी सेवा में सदा तत्पर रहना गुरूपास्ति है।