गुरुमूढ़ता
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हिंसादिपाप- क्रियाओं में और आरम्भपरिग्रह में लिप्त रहने वाले साधुओं को गुरु मानकर उनकी भक्ति, वंदना, प्रशंसा आदि करना गुरूमूढ़ता है। इसे समय-मूढ़ता भी कहते हैं ।
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