गुरुकुल में अपना आत्मसमप्रण करना यह उपसंपदा का अभिप्राय है । आचार्य के चरणमूल में गमन करना उपसंपदा है। मन, वचन और शरीर के द्वारा सर्व सामायिक आदि छः आवश्यक कर्म जिसमें पूर्णता को प्राप्त हुए हैं ऐसा कृतिकर्म कर …
जो मुनि उपसर्ग सहन करते हुए घातिया कर्मों को जीत कर केवलज्ञान प्राप्त करते हैं वे उपसर्ग- केवली कहलाते हैं।