उपसंपदा
गुरुकुल में अपना आत्मसमप्रण करना यह उपसंपदा का अभिप्राय है । आचार्य के चरणमूल में गमन करना उपसंपदा है। मन, वचन और शरीर के द्वारा सर्व सामायिक आदि छः आवश्यक कर्म जिसमें पूर्णता को प्राप्त हुए हैं ऐसा कृतिकर्म कर अर्थात् वन्दना करके विनय के साथ क्षपक हाथ जोड़कर श्रेष्ठ आचार्य को आगे लिखे हुए सूत्र के अनुसार विज्ञप्ति देता है। दीक्षा ग्रहण से आज तक जो-जो व्रतादिक में दोष उत्पन्न हुए हों उनकी मैं दश दोषों से रहित आलोचना कर, दर्शन, ज्ञान और चारित्र में :निःशल्य होकर प्रवृत्ति करने की इच्छा रखता हूँ। हे क्षपक! तुम निःशंक होकर संघ में ठहरो अपने मन में से खिन्नता को दूर भगाओ, हम प्रतिचारकों के साथ तुम्हारे विषय में विचार करेंगे ऐसा आचार्य उत्तर देते हैं। इस प्रकार उपसंपदा अधिकार समाप्त हुआ।