शुद्धात्मा के सिवाय अन्य जो कुछ भी बाह्य व अभ्यन्तर परिग्रह है उस सबका त्याग ही उत्सर्ग है। निश्चयनय सर्वपरित्याग, उत्सर्ग परम-उपेक्षा संयम, वीतराग चारित्र या शुद्धोपयोगये सब एकार्थवाची हैं। बाल, बृद्ध, श्रमित या रोगी श्रमण को भी शुद्धात्म तत्व …
सर्व परिग्रह का त्याग करना उत्सर्ग है। सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग जब होता है उस समय जो चिन्ह मुनि धारण करते हैं, उसको औत्सर्गिक कहते हैं। अर्थात् नग्नता को औत्सर्गिक नहीं कहते हैं। वस्त्रों का त्याग अर्थात् नग्नता, लौंच – …
जिस काल में जीवों की आयु बल और ऊँचाई आदि का उत्तरोत्तर विकास होता है, उसे उत्सर्पिणी काल कहते हैं। इसके दुषमा- दुषमा, दुषमा, दुषमा- सुषमा, सुषमा- दुषमा, सुषमा और सुषमा- सुषमा ऐसे छह भेद हैं ।