नवीन शरीर के लिए कारणभूत जिन पुद्गल वर्गणाओं को जीव ग्रहण करता है उनको खल और रस भाग रूप परिवर्तित करने की सामर्थ्य से युक्त आगत पुद्गल स्कंधों की प्राप्ति को आहार पर्याप्ति कहते हैं। जैसे तिल को पेलकर खल …
औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर के योग्य पुद्गल स्कन्धों की आहार द्रव्य वर्गणा संज्ञा है।
संयम विशेष से उत्पन्न हुई आहारक- शरीर के उत्पादन रूप शक्ति को आहारक ऋद्धि कहते हैं ।
स्वयं सूक्ष्म पदार्थ में जिज्ञासा उत्पन्न होने पर मुनि जिसके द्वारा केवली भगवान के पास जाकर अपनी जिज्ञासा का समाधान प्राप्त करता है उसे आहारक- काय कहते हैं। आहारक-काय द्वारा उत्पन्न होने वाले योग को आहारक-काययोग कहते हैं।