स्थिर नामकर्म
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जिस कर्म के उदय से दुष्कर उपवास आदि तप करने पर भी ( शरीर के) अंग-उपांग आदि स्थिर बने रहते हैं क्षीण नहीं होते वह स्थिर नामकर्म है अथवा जिस कर्म के उदय से (शरीर में ) रस, रुधिर आदि सप्त धातुओं का अपने रूप से कितने ही काल तक अवस्थान बना रहता है वह स्थिर नामकर्म है।
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