सूक्ष्म नामकर्म
जिस कर्म के उदय से अन्य जीवों के अनुग्रह या उपघात के अयोग्य सूक्ष्म शरीर की प्राप्ति हो वह सूक्ष्म नामकर्म है सूक्ष्म नामकर्म का उदय दूसरे मूर्त पदार्थों से आघात नहीं करने योग्य शरीर को उत्पन्न करता है जैसे जल की बूंद वस्त्र से रुकती नहीं है वैसे ही सूक्ष्म शरीर है यद्यपि ऋद्धि प्राप्त मुनियों का शरीर स्थूल है तो भी वज्र, पर्वत आदि में से निकल जाता है रुकता नहीं है सो यह तपजनित अतिशय की ही महिमा है क्योंकि तप, विद्या, मणि, मन्त्र, औषधि की शक्ति के अतिशय का माहात्म्य सहज रूप से प्रगट होता है ऐसा द्रव्य का स्वभाव है औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस व कार्मण ये पाँचों शरीर यद्यपि उत्तरोत्तर सूक्ष्म है परन्तु प्रदेशों का प्रमाण उत्तरोत्तर असंख्यात व अनन्तगुणी है। बंध-विशेष के कारण परिमाण में भेद नहीं होता जैसे रुई का ढेर और लोहे का गोला । तैजस और कार्मण शरीर का प्रतिघात नहीं होता इसलिए वे प्रतिघात रहित है जैसे सूक्ष्म होने से अग्नि लोहे के गोले में प्रवेश कर जाती है। उसी प्रकार तेजस व कार्मण शरीर का वज्रपटल आदि के द्वारा व्याघात नहीं होता ।