श्रावक
सच्चे देव शास्त्रगुरू के प्रति श्रद्धा रखने वाले सद्गृहस्थ को श्रावक कहते हैं अथवा पंच परमेष्ठी का भक्त, दान व पूजा में तत्पर, भेद विज्ञान रूपी अमृत को पीने का इच्छुक तथा मूलगुण व उत्तरगुणों का पालन करने वाला व्यक्ति श्रावक कहलाता है अथवा देशविरत नामक पंचमगुणस्थान के दर्शन प्रतिमा आदि स्थानों में मुनिव्रत का इच्छुक होता हुआ जो सम्यग्दृष्टि व्यक्ति किसी एक स्थान को धारण करता है उसे श्रावक कहा गया है। श्रावक के तीन भेद हैं- पाक्षिक, नैष्ठिक और साधक। – मद्य, मांस और मधु के त्याग सहित पाँच अणुव्रतों को गृहस्थों के मूलगुण कहते हैं अथवा मद्य, मांस, मधु, रात्रिभोजन व पंचउदम्बर फल का त्याग, देववन्दना, जीव दया करना और पानी छानकर पीना • ये आठ मूलगुण श्रावक के माने गए हैं। उत्तरगुण के साथ में दान, पूजा, शील और उपवास ये चार श्रावक के धर्म हैं। पूर्वजों की कीर्ति की रक्षा, जिन पूजन, अतिथि सत्कार, बन्धु बान्धवों की सहायता और आत्मोन्नति ये श्रावक के पाँच कर्तव्य हैं अथवा जिनपूजा, गुरू की सेवा, स्वाध्याय, संयम, तप और दान ये छह कर्म श्रावक के लिए प्रतिदिन करने योग्य आवश्यक कार्य हैं।