शौचधर्म
लोभ का त्याग करना शौचधर्म है अथवा जो समता ओर सन्तोष रूपी जल से तृष्णा व लोभ रूपी मैल को धो देता है तथा भोजन की गृद्धि नहीं रखता उसके शौचधर्म होता है। जीवन लोभ, इन्द्रिय लोभ आरोग्य लोभ और उपयोग लोभ के भेद से लोभ चार प्रकार का है। इस चार प्रकार के लोभ का त्याग करने से शौचधर्म भी चार प्रकार का हो जाता है। शौचधर्म और त्याग में अन्तर है शौच धर्म में परिग्रह के न रहने पर भी कर्मोदय से होने वाली तृष्णा की भी निवृत्ति की जाती है परन्तु त्याग में मात्र विद्यमान परिग्रह छोड़ा जाता है या त्याग का अर्थ स्व-योग्य दान देना है। आकिंचन धर्म और शौचधर्म में भी अन्तर है। आंकिचन धर्म स्वशरीर के संस्कार आदि की अभिलाषा दूर करके निर्ममत्व बढ़ाने के लिए है और शौचधर्म लोभ की निवृत्ति के लिए है।