शरीर
जो विशेष नामकर्म के उदय से प्राप्त होकर शीर्यन्ते अर्थात् जीर्णशीर्ण होता या गलता है वह शरीर है शरीर पाँच प्रकार के हैं औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण । औदारिक शरीर स्थूल है इससे वैक्रियिक शरीर सूक्ष्म है, इससे आहारक शरीर सूक्ष्म है, इससे तैजस शरीर सूक्ष्म है और इससे कार्मण शरीर सूक्ष्म है। परन्तु प्रदेशों की अपेक्षा औदारिक से वैक्रियिक शरीर, असंख्यात गुणों प्रदेश वाला है और वैक्रियिक से आहारक शरीर असंख्यात गुणे प्रदेश वाला है, आहारक शरीर से तैजस शरीर के प्रदेश अनंतगुणे है, तैजस शरीर से कार्मण शरीर के प्रदेश अनंतगुणे अधिक हैं। इस प्रकार यद्यपि वैक्रियिक आदि शरीरों में परमाणुओं का संचय तो अधिक-अधिक है तथापि स्कन्ध बन्धन में विशेषता होने से आगे-आगे के शरीर सूक्ष्म है। जैसे- कपास के पिण्ड से लोहे के पिण्ड में प्रदेशपना अधिक होने पर भी क्षेत्र थोड़ा रोकता है ऐसे ही यहाँ भी जानना चाहिए। एक साथ एक जीव के तैजस और कार्मण से लेकर चार शरीर तक हो सकते हैं किसी के तैजस व कार्मण ये दो शरीर होते हैं किसी के औदारिक, तैजस व कार्मण या वैक्रियिक, तैजस व कार्मण ये तीन शरीर होते हैं। किसी के औदारिक, तैजस, कार्मण और आहारक ये चार शरीर होते हैं । आहारक और वैक्रियिक शरीर का एक साथ होना सम्भव नहीं है। जीव शरीर के साथ ममत्व के कारण शरीर को ग्रहण कर संसार में भ्रमण करता है इसलिए शरीर से ममत्व को छोड़कर अपने शुद्धात्मक की भावना करनी चाहिए ।