वेद
आत्मा में जो कामसेवन या मैथुन रूप चित्त विक्षेप उत्पन्न होता है उसे वेद कहते है । वेद तीन प्रकार के है स्त्री वेद पुरुष वेद और नपुंसक वेद । ये तीनों ही वेद द्रव्य और भाव की अपेक्षा दो प्रकार के होते है। नामकर्म के उदय से जो योनि, मेहन आदि की रचना होती है वह द्रव्य वेद है स्त्री, पुरुष व नपुंसक इन तीनों में जो परस्पर एक दूसरे की अभिलाषारूप भाव है वह नपुंसक वेद है नरकगति में, एकेन्द्रिय व विकलेन्द्रियों में तथा सम्मूर्ध्नि मनुष्य व पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में एकमात्र नपुंसक वेद ही होता है तथा सर्व प्रकार के देवों स्त्री व पुरुष ये दो वेद होते है कर्मभूमिज मनुष्य व पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में स्त्री पुरुष व नपुंसक तीनों वेद होते है। द्रव्यवेद और भाववेद दोनों प्रायः देव, नारकियों में तथा भोगभूमिज मनुष्य व तिर्यंचों में समान ही होते है अर्थात उनके द्रव्य व भाव दोनों ही वेदों का समान उदय पाया जाता है परन्तु क्वचित् कर्म भूमिज मनुष्य व तिर्यंच इन दोनों में विषम भी होते है अर्थात् द्रव्य वेद से पुरुष होना भाव वेद से पुरुष, स्त्री व नपुंसक तीनों प्रकार का हो सकता है। इसी प्रकार द्रव्य से स्त्री और भाव से स्त्री, पुरुष व नपुंसक हो सकता है द्रव्य से नपुंसक और भाव से पुरुष, स्त्री व नपुंसक है। जिनके तीनों प्रकार के वेदों से उत्पन्न होने वाला सन्ताप दूर हो गया है वे अपगत वेद अर्थात वेद रहित जीव है ।