लेश्या
जिसके द्वारा जीव पुण्य – पाप से अपने को लिप्त करता है उसे लेश्य हैं अथवा कषाय से अनुरंजित मन, वचन, काय की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। लेश्या छह प्रकार की है- कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म और शुक्ल । इसमें कृष्ण, नील व कापोत ये तीन अशुभ लेश्या हैं तथा पीत, पद्म व शुक्ल – ये तीन शुभ लेश्याएँ हैं। छहों लेश्याएँ द्रव्य व भाव के भेद से दो प्रकार की हैं। वर्णनामकर्म के उदय से उत्पन्न हुआ जो शरीर का रंग (वर्ण) है उसको द्रव्य लेश्या कहते हैं। कषाय से अनुरंजित मन, वचन, काय की प्रवृत्तिको भाव लेश्या कहते हैं । सौधर्म आदि स्वर्ग के देवों के ये द्रव्य व भाव लेश्याएँ समान होती हैं। नारकी सब (द्रव्य से) कृष्ण वर्ग वाले ही हैं। शेष जीवों में द्रव्य और भाव लेश्या के समान होने का नियम नहीं है। कृष्ण – लेश्या, नील- लेश्या एवं कापोत लेश्या वाले जीव एकेन्द्रिय से लेकर असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक होते हैं। पीत व पद्म लेश्या वाले जीव संज्ञी मिथ्यादृष्टि से लेकर अप्रमत्त संयत गुणस्थान तक होते हैं। शुक्ल लेश्या वाले जीव संज्ञी मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगकेवली गुणस्थान तक होते हैं। तेरहवें गुणस्थान के आगे के सभी जीव लेश्या रहित हैं। नरकगति में तीनों अशुभ लेश्याएँ होती हैं। देवों में भवनत्रिक में जघन्य पीत लेश्या और वैमानिक देवों में तीनों शुभ लेश्याएँ होती हैं । तिर्यंच गति में एकेन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय के तीन अशुभ लेश्याएँ होती हैं तथा भोगभूमियां तिर्यंच और मनुष्यों के तीनों शुभ लेश्याएँ होती हैं। शेष कर्मभूमि के मनुष्य व तिर्यंचों के छहों लेश्याएँ होती हैं। नारकी, तिर्यंच, भवनत्रिक देवों से अपर्याप्त काल में कृष्ण नील और कापोत लेश्याएँ होती हैं और सौधर्म आदि ऊपर के देवों में अपर्याप्त काल में पीत, पद्म और शुक्ल लेश्या होती हैं। असंयत सम्यग्दृष्टि के अपर्याप्त काल में छहों लेश्याएँ होती हैं । औदारिक मिश्रकाय योग के भाव से छहों लेश्याएँ होती हैं । औदारिक मिश्रकाय योग में वर्तमान मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि जीवों के भाव से तीन अशुभ लेश्याएँ ही होती है। मिथ्यादृष्टि व सासादन सम्यग्दृष्टि देवों के मरते समय संक्लेश उत्पन्न होने से पीत, पद्म व शुक्ल लेश्याएँ नष्ट होकर कृष्ण नील व कापोत लेश्या में से यथासंभव कोई एक लेश्या हो जाती है किन्तु सम्यग्दृष्टि देवों के शुभ लेश्याएँ मरण के अनन्तर मुहूर्त तक नष्ट नहीं होतीं।