लिंग
लिंग शब्द के अनेक अर्थ हैं साध्य के अविनाभावीपने रूप नियम का निर्णय करना ही जिसका लक्षण है वह लिंग है। जैसे धुँऐ से अग्नि का निर्णय करना अथवा लिंग शब्द चिन्ह का वाचक है अथवा लिंग शब्द का अर्थ वेद भी है। जैसे स्त्रीलिंग पुरुष लिंग और नपुंसक लिंग । अथवा साधु के रूप या वेष को लिंग कहते हैं। जैनागम में तीन लिंग कहे गए हैं मुनि, आर्यिका और उत्कृष्ट श्रावक या श्राविक ये तीनों लिंग भाव और द्रव्य की अपेक्षा दो प्रकार के होते हैं। साधु का बाह्य रूप द्रव्य लिंग कहलाता है और अंतरंग में सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र का होना भाव लिंग होता है। अचेलकत्व, केशलुंच, शरीर संस्कार का त्याग और पीछी ये मुनि का बहिरंग चिन्ह या द्रव्य लिंग हैं तथा आरम्भ परिग्रह से रहित, योग और उपयोग की शुद्धि से उक्त पर की अपेक्षा से रहित ऐसा मुनि का अंतरंग चिन्ह या भावलिंग है। आर्यिका की उत्कृष्ट श्रावक-श्राविका का बहिरंग चिन्ह या द्रव्य लिंग सावरण ही होता है । बहिरंग द्रव्य लिंग के होने पर भावलिंग होता भी है नहीं भी होता परन्तु अंतरंग भावलिंग के होने पर सर्व परिग्रह के त्याग रूप निर्ग्रन्थ बहिरंग द्रव्यलिंग अवश्य होता ही है।