युधिष्ठिर
पूर्व के दूसरे भव में सोमदत्त नाम का पुत्र था । पूर्व भव में आरण स्वर्ग में देवता, वर्तमान भव में पाण्डु राजा का कुन्ती रानी से पुत्र हुआ। अपने ताऊ भीष्म और गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा और धनुर्विद्या प्राप्त की । प्रवास काल में अनेकों कन्याओं से विवाह किया। दुर्योधन के साथ जुएँ में हारने पर बारह वर्ष का वनवास मिला, वन में मुनियों के दर्शन होने पर स्वनिन्दा की । अन्त में अपने पूर्व भव सुनकर दीक्षा ग्रहण की और घोर तप किया । दुर्योधन के भांजे द्वारा किये गये उपसर्ग को जीतकर मोक्ष प्राप्त किया ।