यवमध्य
ये परिणाम योग्य स्थान दो इन्द्रिय पर्याप्तक के जघन्य योग्य स्थानों से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के उत्कृष्ट योग्य स्थानों तक क्रम से वृद्धि को लिए हुए हैं। इनमें आठ समय वाले योग्य स्थान सबसे थोड़े होते हैं। इनमें दोनों पार्श्व भागों में स्थित सात समय वाले योग स्थान असंख्यात गुणे होते हैं। इनमें दोनों पार्श्व भागों में स्थित पाँच समय वाले योग स्थान असंख्यात गुणे होते हैं। इनमें दोनों पार्श्व भागों में स्थित चार समय वाले योगस्थान असंख्यात गुणे होते हैं। ये सब योगस्थान होने से ग्यारह भागों में विभक्त हैं। अतः समय की दृष्टि से इनकी यवाकार रचना हो जाती है। आठ समय वाले योगस्थान मध्य में रहते हैं। फिर दोनों पार्श्व भागों में सात आदि योग स्थान होते हैं। इनमें से आठ समय वाले योग स्थानों की यवमध्य संज्ञा है। यव मध्य से पहले के योग स्थान थोड़े होते हैं और आगे के योग स्थान असंख्यात गुणे होते हैं। इन आगे के योग स्थानों में संख्यात भाग आदि चार हानियाँ व वृद्धियाँ सम्भव हैं, इसी से योग स्थानों में उक्त जीव को अन्तर्मुहूर्त काल तक स्थित कराया है, क्योंकि योग स्थानों का अन्तर्मुहूर्त काल यही संभव है।