यदृष्ट
जो अपराध अन्य जनों ने देखे हैं उतने ही गुरु के पास जाकर कोई मुनि कहता है और अन्य से न देखे गये अपराधों को छिपाता है, वह मायावी है। ऐसा समझना चाहिए। दूसरे के द्वारा देखे गये हों अथवा न देखे गये हों, सम्पूर्ण अपराधों का कथन गुरु के पास जाकर अतिशय विनय से कहना चाहिए । परन्तु जो मुनि ऐसा नहीं करता वह आलोचना के यदृष्ट नामा तीसरे दोष से लिप्त होता है।