माया कषाय
आत्मा का कुटिल भाव माया है। इसका दूसरा नाम निकृति या वंचना (ठगना) है दूसरे को ठगने के लिए जो कुटिलता या छल आदि किए जाते है वह माया कषाय है अथवा अपने हृदय के विचार को छुपाने की जो चेष्टा की जाता है उसे माया कहते हैं। यह बांस की गठीली जड़, मेढे के सींग, गाय के मूत्र की वक्र रेखा और लेखनी के समान चार प्रकार की है। अनन्तानुबन्धी मान, अप्रत्याख्यानावरण माया, प्रत्याख्यानावरण माया और संज्वलन माया ऐसे चार भेद भी माया कषाय के हैं।