मनोयोग
मन की उत्पत्ति के लिए जो प्रयत्न होता है उसे मनोयोग कहते हैं अथवा बाह्य पदार्थ के चिन्तन में प्रवृत्त हुए मन से उत्पन्न जीव प्रदेशों के परिस्पन्दन को मनोयोग कहते हैं मनोयोग चार प्रकार है सत्य मनोयोग, असत्य मनोयोग, सत्यमृषा (उभय) मनोयोग और असत्यमृषा ( अनुभय) मनोयोग। -सत्य, असत्य, उभय और अनुभय इन चार प्रकार के पदार्थों को जानने या कहने में जीव के मन व वचन की प्रयत्नरूप जो प्रवृत्ति विशेष होती है उसी को सत्य, असत्य, उभय और अनुभय मन व वचन योग कहते हैं। उदा.- यथार्थ ज्ञानगोचर पदार्थ सत्य हैं जैसे- जल ज्ञान का विषयभूत यथार्थ जल । क्योंकि उसमें स्नान, पान आदि अर्थक्रिया का सद्भाव है। अयथार्थ ज्ञानगोचर पदार्थ असत्य जैसे- जलज्ञान का विषयभूत मरीचिका का जल। क्योंकि उसमें स्नान, पान आदि अर्थ क्रिया का अभाव है यथार्थ और अयथार्थ दोनों ज्ञानगोचर पदार्थ उभय या सत्यमृषा है जैसे- जल ज्ञान के विषयभूत कमण्डलु में घड़े का ग्रहण । क्योंकि जलधारण आदि रूप क्रिया के सद्भाव से यह घड़े की तरह सत्य है परन्तु घड़े के आकार के अभाव से असत्य भी है। यथार्थ और अयथार्थ दोनों ही प्रकार के निर्णय से रहित ज्ञानगोचर पदार्थ अनुभय है जैसे यह कुछ प्रतिभासित होता है इसमें निर्णय का अभाव होने से उसे सत्य नहीं कह सकते हैं और न ही असत्य कह सकते हैं इसलिये यह अनुभय है इसी प्रकार घड़े का विकल्प सत्य है घड़े में वस्त्र का विकल्प असत्य है कुण्डी में जलधारण देखकर घड़े का विकल्प करना उभय है और अहो देवदत्त इस प्रकार की आमन्त्रणी आदि भाषा में उत्पन्न होने वाला विकल्प अनुभय है मनोयोग के दो भेद शुभ मनोयोग और अशुभ मनोयोग भी हैं। हिंसक विचार, ईर्ष्या, असूया आदि अशुभ मनोयोग है और अर्हन्त भक्ति, तप की शुचि, श्रुत की विनय आदि विचार शुभ मनोयोग है।