भावलिंग
मूर्च्छा (ममत्व) और आरंभ रहित उपयोग और योग की शुद्धि से युक्त तथा पर की अपेक्षा से रहित ऐसा जिनेन्द्र भगवान कथित सामान्य का अन्तरंग लिंग है, जो कि मोक्ष का कारण है। जो देहादि के परिग्रह से रहित मान कषाय से रहित अपनी आत्मा में लीन है, वह साधु भाव लिंगी है। जो सम्यक् दर्शन सहित निर्ग्रन्थ रूप है, वही निर्ग्रन्थ है। बहिरंग लिंग के होने पर भाव लिंग होता भी है, नहीं भी होता, कोई नियम नहीं है। परन्तु अभ्यंतर भावलिंग के होने पर सर्वपरिग्रह के त्यागरूप बहिरंग द्रव्यलिंग अवश्य होता है।