प्राणायाम
मन, वचन और काय इन तीनों का निग्रह करना तथा शुभ- भावना प्राणायाम कहलाता है अथवा काय के स्तम्भन रूप प्राणायाम तीन प्रकार का है- पूरक, कुम्भक और रेचक | जिस समय वायु को तालु – रन्ध्र से खींचकर शरीर में पूर्णतया रोके रखना पूरक है नाभि के मध्य स्थित करके रोकना कुम्भक है तथा वायु को यत्नपूर्वक धीरे-धीरे बाहर निकालना रेचक है। मोक्षमार्ग में प्राणायाम कार्यकारी नहीं है क्योंकि जो मुनि संसार, शरीर और भोगों से विरक्त है जिनके कषाय अत्यन्त मंद है, जो विशुद्ध भाव युक्त है, वीतराग और जितेन्द्रिय है, ऐसे योगी को प्राणायाम प्रशंसा करने योग्य नही है क्योंकि प्राणायाम में प्राणों को रोकने से पीड़ा होती है पीड़ा से आर्तध्यान होता है उस आर्तध्यान से तत्त्वज्ञानी मुनि अपने लक्ष्य से विचलित हो जाते हैं। प्राणायाम से देह निरोग होती है, शरीर हल्का हो जाता है, परन्तु इस वायु धारणा रूप प्राणायाम से मुक्ति नहीं होती। अतः प्राणायाम शारीरिक स्वास्थ्य का कारण है ध्यान का कारण नहीं है। ध्यानावस्था में श्वांसोच्छ्वास का प्रसार स्वाभाविक होना चाहिए।