प्रशस्त ध्यान
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जो ध्यान कर्मों को जलाने या क्षय करने में समर्थ है, वह प्रशस्त है। धर्मध्यान और शुक्लध्यान दोनों ही प्रशस्त ध्यान हैं, आर्त और रौद्र ध्यान अप्रशस्त ध्यान हैं ।
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