प्रशम
इन्द्रिय-विषयों में तथा तीव्र क्रोधादि में शिथिल मन का होना अर्थात् मन को इनमें नहीं लगाना ही प्रशम भाव है अथवा अपराध करने वाले जीवों पर कभी भी उनको मारने आदि रूप भाव नहीं होना भी प्रशम-भाव है यह प्रशम – भाव सम्यग्दृष्टि का परम गुण हैं।
इन्द्रिय-विषयों में तथा तीव्र क्रोधादि में शिथिल मन का होना अर्थात् मन को इनमें नहीं लगाना ही प्रशम भाव है अथवा अपराध करने वाले जीवों पर कभी भी उनको मारने आदि रूप भाव नहीं होना भी प्रशम-भाव है यह प्रशम – भाव सम्यग्दृष्टि का परम गुण हैं।
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