प्रशंसा
गुणों को प्रकट करने को भाव प्रशंसा है। पंचेन्द्रिय के विषय में लोक के असंख्यात भाग विभाग प्रमाण तीव्र भाव क्रोध आदि स्वरूप से शिथिल मन का होना ही प्रशम भाव कहलाता है अथवा उसी प्रकार अपराध करने वाले जीवों पर कभी भी वधादि रूप विकार के लिए बुद्धि का नहीं होना प्रशम माना गया है। सम्यक्त्व का अविनाभावी प्रशम भाव सम्यग्दृष्टि का परम गुण है।