प्रभावना
सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्र रूप रत्नत्रय के प्रभाव से आत्मा को प्रकाशमान करना प्रभावना है अथवा रत्नत्रय और उसके धारक मुनिराजों की महिमा बताना यह प्रभावना गुण है इस गुण से सम्यक्त्व की वृद्धि होती है। महापुराण आदि धर्मकथा के व्याख्यान करके हिंसा रहित तपस्या करके, जीवों पर दया व अनुकम्पा करके तथा जिन पूजा व दान आदि करके धर्म की प्रभावना करनी चाहिए। पर समय रूपी जुगनुओं के प्रकाश को पराभूत करने वाले ज्ञानरवि की प्रभा से इन्द्र के सिंहासन को कंपा देने वाले महोपवासादि सम्यक् तपों से तथा भव्यजन रूपी कमलों को विकसित करने के लिए सूर्यप्रभा के समान जिनपूजा के द्वारा सद्धर्म का प्रकाश करना मार्ग प्रभावना। यह तीर्थंकर नामकर्म के बन्ध का कारण है और सोलहकारण भावना में से एक है।