प्रतिसेवना कुशील
कितनेक मुनि इन्द्रिय चोरों से पीड़ित होते हैं और कषाय रूप श्वापदों से ग्रहण किए जाते हैं, तब साधु मार्ग का त्याग कर उन्मार्ग में पलायन करते हैं। साधुसार्थ से दूर पलायन जिन्होंने किया है, ऐसे वे मुनि कुशील प्रतिसेवना कुशील नामक भ्रष्ट मुनि के सदोष आचरण रूप वन में उन्मार्ग से भागते हुए आहार, भय, मैथुन और परिग्रह की वांछा रूपी नदी में पड़कर दुःख रूप प्रवाह में डूबते हैं। जो परिग्रह से घिरे रहते हैं, जो मूल और उत्तर गुणों में परिपूर्ण हैं, लेकिन कभी-कभी उत्तर गुणों की विराधना करते हैं, वे प्रतिसेवना कुशील हैं । ग्रीष्मकाल में जंघा प्रक्षालन आदि का सेवन करने की इच्छा होने से जिनके संज्वलन कषाय जगती हैं और अन्य कषायें वश में हो चुकी है वे कषाय कुशील हैं प्रतिसेवना कुशील मूलगुणों की विराधना न करता हुआ उत्तर गुणों की विराधना की प्रतिसेवना करने वाला होता है। कषाय कुशील के प्रतिसेवना नहीं होती।