प्रतिघात
एक मूर्तिक पदार्थ का दूसरे मूर्तिक पदार्थ के द्वारा जो व्याघात होता है उसे प्रतिघात कहते हैं । बादर जीवों के शरीर तो प्रतिघात शरीर सहित होता है, अर्थात् स्थूल होता है। जो दूसरे को रोके और दूसरे से रुके वह स्थूल कहलाता है। जो स्थूल होता है, बढ़ता है या जिसके द्वारा स्थूलन होता है या स्थूलन मात्र को स्थूल कहते हैं। कार्मण व तैजस शरीरों का इस प्रकार का प्रतिघात नहीं होता, इसलिए वे प्रतिघात रहित हैं। जैसे- सूक्ष्म होने से अग्नि (लोहे के गोले) में प्रवेश कर जाती है, उसी प्रकार तैजस और कार्मण शरीर का वज्रपटल आदि में प्रतिघात नहीं होता है । यद्यपि बादर अपर्याप्तक वायुकायिक आदि की अवगाहना स्तोक है, और इससे लेकर सूक्ष्म वायुकायिक आदि पृथ्वीकायिक पर्यंत जीवों की जघन्य व उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यात गुनी है, तो भी सूक्ष्म नामकर्म के सामर्थ्य से अन्य पर्वत आदि से भी इनका प्रतिघात नहीं होता है। उनमें से भी वे निकल कर चले जाते हैं। बादर नामकर्म के उदय से अल्प शरीर होने पर भी दूसरों के द्वारा प्रतिघात होता है, यद्यपि ऋद्धि प्राप्त मुनियों का शरीर बादर है, तो भी वज्र पर्वत आदिक में से भी निकल जाता है, सो यह तप जनित अतिशय की महिमा है। क्योंकि तप, विद्या, मणि, मंत्र औषधि की शक्ति के अतिशय का महात्म्य ही प्रकट होता है। ऐसी ही द्रव्य का स्वभाव है। यहाँ पर अतिशय वालों का विषय नहीं है, इसलिए अतिशय रहित वस्तु के विचार में पूर्वोक्त शास्त्र का उपदेश बादर सूक्ष्म जीवों का सिद्ध हुआ।