प्रकुर्वी क्षपक
जब वस्तिका में प्रवेश करता है अथवा बाहर जाता है उस समय में वसतिका संस्तर और उपकरण इनके शोधन करने में खड़े रहने, बैठने, सोने, शरीर का मल दूर करने, आहार आदि लाने में, जो आचार्य क्षपक के ऊपर अनुग्रह करते हैं सर्व प्रकार से क्षपक की शुश्रुषा करते हैं और उसमें बहुत परिश्रम होने पर भी खेद खिन्न नहीं होते हैं ऐसे आचार्य को प्रकुर्वी आचार्य कहते हैं।