पाण्डव
युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव ये पाँचों कुरुवंशी राजा पाण्डु के पुत्र होने से पाण्डव कहलाते थे। भीम के बल से अपमानित होने तथा इनका राज्य हड़पना चाहने के कारण कौरव राजा दुर्योधन इनसे द्वेष करता था। उसी द्वेषवश उसने इनको लाक्षागृह में जलाकर मारने का षड़यंत्र किया, पर किसी प्रकार पाण्डव वहाँ से बच निकले और अर्जुन ने स्वयंवर में द्रौपदी व गाण्डीव धनुष प्राप्त किया। वहीं पर इनका कौरवों से मिलाप हुआ तथा आधा राज्य बाँटकर रहने लगे। परन्तु पुनः ईर्ष्यावश दुर्योधन ने जुए में इनका सर्व राज्य जीतकर इन्हें बारह वर्ष अज्ञात वास करने पर बाध्य किया। सहाय वन में इनकी दुर्योधन के साथ मुठभेड़ हो गयी, जिसके पश्चात् इन्हें विराट नगर में राजा विराट के यहाँ छद्म भेष में रहना पड़ा । द्रौपदी पर दुराचारी दृष्टि रखने के अपराध में भीम ने राजा के साले कीचक व उसके सौ भाइयों को मार डाला । छद्म भेष में ही कौरवों से भिड़कर अर्जुन ने राजा के गोकुल की रक्षा की, अन्त में कृष्ण जरासन्ध युद्ध में इनके द्वारा सब कौरव मारे गये । एक विद्याधर के द्वारा हर ली गयी द्रोपदी को अर्जुन ने विद्या सिद्ध करके पुनः प्राप्त किया। तत्पश्चात् भगवान नेमिनाथ के समीप जिन दीक्षा धार शत्रुंजय गिरि पर्वत पर घोर तप किया। दुर्योधन के भानजे कृत दुःसह उपसर्ग को जीत युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन मोक्ष को प्राप्त हुए तथा नकुल व सहदेव सर्वार्थ सिद्धि में देव हुए।