परसंग्रह नय
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सम्पूर्ण जीवादि विशेष पदार्थों में उदासीनता धारण करके जो सबको ‘सत् है’ ऐसा एकपने रूप में अर्थात् मात्र को ग्रहण करता है वह परसंग्रह (शुद्धसंग्रह) है।
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