परभविक प्रकृतियाँ
नामकर्म की जिन प्रकृतियों का परभव सम्बन्धी देवगति के साथ बंध होता है, उन्हें परभव नामकर्म प्रकृति कहते हैं। परभविक नामकर्म की प्रकृतियाँ कम से कम 27 और अधिक से अधिक 30 होती हैं। देवगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिक शरीर को छोड़कर चार शरीर, समचतुस्रसंस्थान, वैक्रियक और आहारक आंगोपांग, देवगत्यानुपूर्वी, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु आदि चार प्रशस्त विहायोगति, त्रस आदि चार, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और तीर्थंकर इनमें से आहारक अंगोपांग और तीर्थंकर ये तीन प्रकृतियाँ जब नहीं बनती तब शेष 27 ही बनती हैं।