निषद्या परीषह जय
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श्मशान, उद्यान, गुफा आदि में रहते हुए जो साधु वीरासन आदि आसन विशेष में स्थित होकर आत्म ध्यान में लीन रहते हैं और उपसर्ग आदि आने पर भी आसन से विचलित नहीं होते, उनके यह निषद्या- परीषह- जय है।
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