नग्नता
‘चेल’ शब्द परिग्रह का लक्षण है, अत: चेल का अर्थ वस्त्र ही न समझकर उसके साथ अन्य परिग्रहों का ग्रहण करना चाहिए । वस्त्र के साथ सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग जिसने किया है, वह अचेलक या नग्न कहलाता है। निर्वस्त्र मुनि खड़े रहना, बैठना, गमन करना इत्यादि कार्यों में वायु के समान अप्रतिबद्ध रहते हैं। जितने तीर्थंकर हो चुके और होने वाले हैं वे सब वस्त्र रहित होकर ही तप करते हैं। जिन प्रतिमाओं और तीर्थंकरों के अनुयायी गणधर निर्वस्त्र हैं, उनके सर्व शिष्य भी वस्त्र रहित ही होते हैं। नग्नता में अपना बल व वीर्य प्रगट करना वह गुण है। नग्नता में दोष तो है ही नहीं परन्तु गुण मात्र अपरिमित है।