मरण
प्राणों के परित्याग का नाम मरण है । अथवा आयु के क्षय को मरण कहते हैं मरण दो प्रकार का है- नित्यमरण व तद्भवमरण । प्रतिक्षण आयु आदि प्राणों का क्षय होते रहना नित्य मरण है इसे अवीचिमरण भी कहते हैं तथा नूतन शरीर धारण करने के लिए पूर्व पर्याय का नष्ट होना तद्भव मरण है। मरण के पाँच भेद भी हैं पण्डित-पण्डित मरण, पण्डित मरण, बालपण्डित मरण, बालमरण और बाल-बालमरण । केवली भगवान के निर्वाण प्राप्ति को पण्डित- पण्डित मरण कहते हैं रत्नत्रय से युक्त मुनियों के मरण को पण्डित मरण कहते हैं वह तीन प्रकार का है- भक्त प्रत्याख्यान, इंगिनीमरण और प्रायोपगमन(दे0 सल्लेखना )। देशव्रती श्रावक के मरण को बाल पण्डित मरण कहते हैं । अविरत सम्यग्दृष्टि सद्गृहस्थ के मरण को बालमरण कहते हैं अज्ञानी मिथ्यादृष्टि जीव के मरण को बाल-बाल मरण कहते हैं। शस्त्र से, विषभक्षण से, अग्नि द्वारा जलने से, जल में डूबने से, अनाचार रूप वस्तु के सेवन से अपघात कर लेना दीर्घ संसार का कारण होने से बाल-बाल मरण है स्वकाल मरण और अकाल मरण ऐसे दो भेद भी मरण के हैं। प्रहार आदि समस्त बाह्य कारणों से निरपेक्ष मृत्यु होने में जो कारण है वह मृत्यु का स्वकाल व्यवस्थापित किया जाता है और शस्त्र संताप आदि बाह्य कारणों के अन्वय व व्यतिरेक का अनुसरण करने वाला अपमृत्यु काल माना जाता है।