मधु
मधु की बूंद भी मधुमख्खी की हिंसा रूप ही होती है। स्वमेव चूसे हुए अथवा छल द्वारा मधु छत्ते से लिए हुए मधु का ग्रहण करने में भी हिंसा होती है, क्योंकि इस प्रकार उसके आश्रित रहने वाले अनेकों क्षुद्र जीवों का घात होता है। मधु, उपार्जन करने वाले प्राणियों के समूह के नाश से उत्पन्न होने वाले और अपवित्र, ऐसी मधु की एक भी बूंद खाने वाला पुरुष सात ग्रामों को जलाने से भी ज्यादा पाप को बाँधता है। मधु की उत्पत्ति मख्खियों के मांस रक्तादि के निचोड़ से होती है। इसलिए मधु के खाने में मांस भक्षण का दोष आता है। जिस प्रकार मांस में सूक्ष्म निगोद राशि उत्पन्न होती रहती है उसी प्रकार जिस किसी अवस्था में रहते हुए भी मधु में सदा जीव उत्पन्न होते रहते हैं।