1. तीर्थंकरों के गुणों का कीर्तन करना स्तव, स्तवन या स्तुति कहलाता है अथवा अतीत, अनागत और वर्तमान काल विषयक पाँच परमेष्ठियों के भेद को न करके अरहन्तों को नमस्कार हों, जिनों को नमस्कार हो इस प्रकार नमस्कार करना स्तव …
उच्छिष्टावलि प्रमाण संज्वलन क्रोध का द्रव्य मान उदयावलि निषेकों में संक्रमण करके अनन्तर समय में उदय में आते हैं यही स्तिबुक संक्रमण है। गति जाति आदि पिंड प्रकृतियों में से जिस किसी विवक्षित एक प्रकृति के उदय आने पर अनुदय …
किसी को भी चोरी के लिए प्रेरित करना या दूसरे के द्वारा चोरी की प्रेरणा दिलाना या उसकी अनुशंसा करना स्तेन प्रयोग है।