मन की पवित्रता और कर्मों की पवित्रता आदमी की संगति की पवित्रता पर निर्भर है। कुशील भी सद्गोष्ठी से सुशील हो जाता है। जैसे— मलिन जल भी कतक फल के संयोग से स्वच्छ होता है, वैसा ही कलुष मोह भी …
एक प्रकार बंधना गुणाकार रूप से अन्तरकृष्टि उसके समूह का नाम संग्रहकृष्टि है। कृष्टिनिक अनुभाग विषै गुणाकार का प्रमाण यावत् एक प्रकार बढ़ता भया तावत् सो ही संग्रहकृष्टि कही। बहुरि जहाँ निचली कृष्टि तैं ऊपरली कृष्टि का गुणाकार अन्य प्रकार …