संग्रहनय
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अभेद रूप से समस्त वस्तुओं को संग्रह करके जो कथन करता है वह संग्रह-नय है । अथवा पर्यायों की अपेक्षा न करके वस्तु को सामान्य रूप से ग्रहण करना संग्रह – नय है। जैसे- नारकी, देव, मनुष्य आदि सबका एक जीव शब्द द्वारा संग्रह होता है या खट्टा, मीठा आदि का रस शब्द द्वारा ग्रहण हो जाता है।
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