दर्शन विशुद्धि, विनय सम्पन्नता, शीलव्रतों में निर्दोषता, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग (ज्ञान में सतत उपयोग), सतत संवेग सम्पन्नता, यथाशक्ति त्याग, यथाशक्ति तप, साधु-समाधि, वैयावृत्य करना, अरहन्त भक्ति, आचार्य भक्ति, बहुश्रुतवान भक्ति, प्रवचन भक्ति, षड् आवश्यक क्रियाओं को न छोड़ना, मोक्षमार्ग की प्रभावना …