षोडश कारण भावना
दर्शन विशुद्धि, विनय सम्पन्नता, शीलव्रतों में निर्दोषता, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग (ज्ञान में सतत उपयोग), सतत संवेग सम्पन्नता, यथाशक्ति त्याग, यथाशक्ति तप, साधु-समाधि, वैयावृत्य करना, अरहन्त भक्ति, आचार्य भक्ति, बहुश्रुतवान भक्ति, प्रवचन भक्ति, षड् आवश्यक क्रियाओं को न छोड़ना, मोक्षमार्ग की प्रभावना और प्रवचन वात्सल्य इन सोलह भावनाओं रूप कारणों से जीव तीर्थंकर नामकर्म का अर्जन करता है। यदि अलग-अलग इनका भले प्रकार से चिन्तन किया जाता है तो भी ये तीर्थंकर नामकर्म के आस्रव के कारण होते हैं और समुदाय रूप से सबका भले प्रकार से चिन्तन किया जाता है तो भी ये तीर्थंकर नामकर्म के आस्रव के कारण हैं इनमें दर्शनविशुद्धि की प्रधानता है।