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शं शक शत शप शब शम शय शर शल शा शि शी शु शू शे शै शो शौ श्
श्र श्ल श्व
23 July

श्रद्धान

  • Posted by kundkund
  • Comments 0 comment

जिनेन्द्र भगवान ने आत्मा को जैसा जाना, वैसा ही है – इस प्रकार की प्रतीति का नाम श्रद्धान है अथवा तत्वार्थ के विषय में उन्मुख बुद्धि को श्रद्धा कहते हैं। दृष्टि, श्रद्धा, रुचि और प्रीति ये एकार्थवाची शब्द हैं। जो …

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13 July

श्रद्धान

  • Posted by kundkund

मोक्षमार्ग में चारित्र आदि की मूल होने से श्रद्धा को प्रधान कहा है। यद्यपि अंध श्रद्धान अकिंचित्कर होता है तथापि सूक्ष्म पदार्थों के विषय में आगम पर अंध श्रद्धान करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं। सम्यग्दृष्टि का यह अंध श्रद्धान …

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23 July

श्रमण 

  • Posted by kundkund
  • Comments 0 comment

श्रमण व अनगार सम्यक् व मिथ्या दोनों प्रकार के होते हैं। सम्यक् श्रमण विरागी और मिथ्या श्रमण सरागी होते हैं। उनकी ही यति, ऋषि, मुनि और अनगार कहते हैं ।

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23 July

श्रावक 

  • Posted by kundkund
  • Comments 0 comment

सच्चे देव शास्त्रगुरू के प्रति श्रद्धा रखने वाले सद्गृहस्थ को श्रावक कहते हैं अथवा पंच परमेष्ठी का भक्त, दान व पूजा में तत्पर, भेद विज्ञान रूपी अमृत को पीने का इच्छुक तथा मूलगुण व उत्तरगुणों का पालन करने वाला व्यक्ति …

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13 July

श्रावक

  • Posted by kundkund

विवेकवान विरक्तचित्त अणुव्रती गृहस्थ को श्रावक कहते हैं। ये तीन प्रकार के हैं – पाक्षिक, नैष्ठिक व साधक। निज धर्म का पक्ष मात्र करने वाला पाक्षिक है और व्रतधारी नैष्ठिक। इसमें वैराग्य की प्रकर्षता से उत्तरोत्तर 11 श्रेणियाँ हैं, जिन्हें …

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