रागादि विकल्प से रहित स्वसंवेदन ज्ञान को आगम भाषा में शुक्ल ध्यान कहा है अथवा निज शुद्धात्मा में विकल्प रहित समाधिरूप शुक्ल ध्यान है अथवा आत्मा के शुचि गुण के सम्बन्ध से इस ध्यान का नाम शुक्ल ध्यान पड़ा । …
पक्षपात न करना, आगामी-काल में भोग की आकांक्षा न करना, समस्त प्राणियों में समता – भाव रखना तथा रागद्वेष व मोह नहीं करना, ये शुक्ल – लेश्या के लक्षण हैं।
ज्ञानानुभूति स्वरूप शुद्ध चेतना है केवलज्ञान शुद्धचेतना है। शुद्धचेतना आत्मा का स्वरूप है ज्ञान चेतना शुद्ध कहलाती है।