शुद्ध
वचन और अर्थगत दोषों से रहित होने के कारण सिद्धान्त कर्मों में शुद्ध है। निरूपाधि रूप उपादान शुद्ध कहलाता है जैसे स्वर्ग के पतित्व आदि गुण की भांति सिद्ध जीव के अनन्तज्ञान आदि गुण, मिथ्यात्व, राग आदि भावों से रहित होने के कारण आत्मा शुद्ध कहा जाता है। तत्त्व परमात्व, द्रव्य, स्वभाव, परम ध्येय शुद्ध ओर परम एकार्थवाची है।